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विस्तार : सीक्रेट ऑफ डार्कनेस (भाग : 26)





विस्तार आचार्य को ढूंढता हुआ पहाड़ी के तल से निकलकर हवा में उठते हुए ऊपर आ चुका था, यहां से चारों तरफ हिम से ढका हुआ दिख रहा था, जहाँ तक नजर जा रही थी वह स्थान हिम से ही ढका हुआ था।

"इसका अर्थ यह है कि मुझे शक्ति नियंत्रित करने के लिए स्वयं के मन पर नियंत्रण पाना होगा, तो क्या इस बार नराक्ष मुझे नियंत्रित करने का अवसर छोड़ देगा? क्योंकि अब तो मैं मेरे ही अस्तित्व के साथ जुड़ा हूँ! उस बार उसने मुझे आसानी से नियंत्रित कर लिया था और जब मैं उसके नियंत्रण से बाहर निकला तो उसने मुझे कैद करने का प्रयास नही किया और मैं अपनी आत्मा की ऊर्जा का प्रयोग कर सका। तो क्या इस बार भी ऐसा हो सकेगा? मुश्किल है क्योंकि इस बार नराक्ष अपना सेवक बनाना चाहता है पर वीर नही! उसे डर है कि मैं दुबारा वही करूँगा। अब तो शायद अंधेरा भी नराक्ष के पक्ष में है, पर क्यों?" विस्तार के मन में हजारों सवाल काँटे की तरह चुभ रहे थे, जिनका उत्तर हासिल करना अत्यंत आवश्यक था।

हिम की उस घाटी में चारों ओर सन्नाटा फैला हुआ था, मात-पिता एवं आचार्य के दर्शन से कई प्रश्नों के उत्तर मिले थे परन्तु कई प्रश्नों के उत्तर मिलने के बजाए वह प्रश्न ही विकट होता जा रहा था। विस्तार अब भी कांटे जैसे चुभने वाले अनगिनत सवालों के भंवर में फंसा हुआ था।

"उस बार 'ओमेगा किले' को ढूंढने में "त्रयी महाशक्तियों' ने मेरी मदद की थी, क्योंकि वह इस संसार में कहीं भी हो सकता है। मेरी यह अल्प शक्तियां मुझे नराक्ष और वीर से छिपा पाने में भी असक्षम हो रही हैं, और अब  मुझे किसी तरह डार्क फेयरीज़ और मैत्रा को ढूंढना होगा क्योंकि मुझे उनके जागृत होने के तीव्र संकेत मिल रहे हैं। तो क्या इस बार भी हम गुलाम बनने वाले हैं? नही! नही! मुझे जल्दी से सब ठीक करना होगा क्योंकि तब अंधेरे ने भी मेरी मदद की थी पर इस बार स्थितियां बिल्कुल प्रतिकूल हैं। अब तो सब कुछ मेरे ही खिलाफ होगा, उजाला भी मुझे नही अपना सकता और अंधेरा…. वह भी मेरे खिलाफ है।" विस्तार सोच में डूबा हुआ था। उसके मन में हजारों विचार की आंधी की भांति उमड़ रहे थें परन्तु अब उसे किसी तरह स्वयं को छिपाकर उस अंधेरी दुनिया में जाकर डार्क फेयरीज़ और मैत्रा को स्वतंत्र कराना है। क्योंकि यदि वे वहाँ हैं तो कोई न कोई उनके मानवीय अस्तित्व का सबकुछ तबाह करके अपना गुलाम बनाकर ले गया होगा। पर क्या वह यह सब कर पायेगा? उसकी शक्तियां आंशिक रूप से कार्यरत थी, यदि उसने कोई और कोशिश की तो वह नराक्ष की दृष्टि में आ जायेगा। स्थितियां केवल प्रतिकूल ही नही विकट भी हो चुकी थीं।

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ग्रेमन का साम्राज्य!

दहकते ज्वालामुखी के भांति बने उस महल से चीखों के साथ अट्ठहास के स्वर गूंज रहे थे। अत्यधिक विशाल कक्ष में हजारों की संख्या में डार्क गार्ड्स खड़े थे जिनके सिर में जल रही आग की लपटें उत्साह से भड़क उड़ी थी जिस कारण ये ऊँचाई तक जल रहे थे। इस थोड़े छोटे और अत्यधिक डरावने एवं बदसूरत कक्ष में तीन से चार लोग उपस्थित थे। डार्क फेयरीज़ ग्रेमन के सामने घुटनों के बल बैठी हुई थीं। डार्क लीडर मैत्रा को ला पाने में असफल रहा, जिस कारण उसे लग रहा था कि ग्रेमन उसपर क्रोधित होगा परन्तु ग्रेमन लगातार अट्ठहास किये जा रहा था, उसके इस अट्ठहास को सुनकर चट्टानों के भी आँसू आने को थे।

"स्वामी! क्या आपको मेरे असफल होने का दुख अन्यथा क्रोध नही है?" डार्क लीडर डरता हुआ पूछा।

"कदापि नही! तुम तो मेरे सबसे प्रिय अनुचर हो हाहाहा….!" अट्ठहास करता हुआ शैतानी मुद्रा बनाकर बोला, उसकी दहकती आँखों में स्याह पुतलियां नाच रही थीं।

'क्या हुआ है इन्हें? लगता है सदियों से शक्तिहीन और लगभग चेतनाहीन रहने के कारण इनकी स्मृति पर ऐसा बुरा प्रभाव पड़ा। अब आखिर मैं क्या करूँ?' डार्क लीडर, ग्रेमन की ऐसी हालत देखकर चिंता में पड़ गया था।

"ज्यादा सोच विचार न करो डार्क लीडर! जाओ कुछ नरबलियाँ देकर हमारी शक्ति को और बढ़ाओ!" डार्क लीडर को सिर झुकाए सोच में पड़े हुए देखकर ग्रेमन उसका चेहरा दाएं हाथ की  तर्जनी उंगली से ऊपर उठाते हुए बोला।

"अवश्य स्वामी!" डार्क लीडर जैसे तन्द्रा से जागते हुए बोला। वह जानता था कि किसी को अत्यधिक यातना से डरा कर मारने से उसके स्वामी को आंशिक अधिक लाभ होगा, क्योंकि अंधेरे का प्राणी होने के कारण उनके हाथों मरने वाले या तड़पने वाले उजाले के जीव की ऊर्जा अंधेरे को ही मिलती है। उजाला जितना अधिक डरेगा, अंधेरा उतना ही घना छाता जाएगा।

"हमारे लिए क्या आदेश है स्वामी?" डार्क फेयरीज़ में से एक बोली। जिसका शरीर दहक रहा था, ऐसा प्रतीत होता था मानो कोई सूर्य स्वयं को समेटे हुए वहां खड़ा है। यह आँच थी, उसके पास में ही चमकते आसमान के रंग की राख के समान ऐश थी। ऐश का शरीर ऐसे चमक रहा था जैसे रात को आसमान टिमटिमाते तारों से चमकने लगता है परन्तु इस चमक की लौ किसी को भी अंधा कर सकती थी।

"कुछ नही ...हाहाहा!" अट्टहास करता हुआ ग्रेमन इस प्रकार बोला जैसे डार्क फेयरीज़ किसी काम की ही न हों। डार्क फेयरीज़ को भी ग्रेमन के चिढ़ाते हुए हँसने का मन्तव्य समझ नही आ रहा था।

"बड़ा मुश्किल होता है न सबकुछ जीतकर हारना?" ग्रेमन के सवालियां शब्दों में व्यंग्य का पुट था। उसकी भभकती हुई आंखों को देखकर यह कोई नही बता सकता था कि वह क्रोध से भड़क रहा था अन्यथा उसके मस्तिष्क में कोई अन्य शैतानी चाल थी। उसके इस प्रश्न ने डार्क फेयरीज़ को सन्न कर दिया।

"मैं सबकुछ जीत चुका था, नराक्ष को भी अंत का अंतिम पड़ाव पार करा दिया होता परन्तु बस एक ही पल में उस बच्चे विस्तार ने स्वयं को कुंजी बनाकर आत्मबलि देकर मुझे अपने ही कक्ष में शक्तिहीन होकर पड़े रहने पर विवश किया।" ग्रेमन क्रोध से फट पड़ा।

"उस विस्तार ने मुझे मात दी और इसमें उसकी सहायता किया तुमने! जो कि उस वक़्त तक मेरी सहियोगिनी थी।" ग्रेमन की नाचती पुतलियां डार्क फेयरीज़ को घूर रही थी परन्तु डार्क फेयरीज़ के चेहरे पर जैसे कोई भाव उत्पन्न नही हुआ वह ब भी स्थिर शून्य भाव में बनी हुई थीं। "तुम्हें क्या लगता है कि मैने तुम्हें तुम्हारी शक्तियों को हासिल करने के लिए बुलाया है? नही! पहले मेरे में यह विचार जरूर आया था परन्तु मैं बार बार वही गलती नही दोहराना चाहता इसलिए अब तुम दोनों को मरना ही होगा।हाहाहा….हा" अट्ठहास करता हुआ अपने विशाल स्याह आसन से उठ चुका था वह शैतान, उसकी दहकती आंखे बता रही थी कि उसका निर्णय विक्षिप्त भले ही क्यों न लग रहा हो परन्तु उसने निर्णय ले लिया था। डार्क फेयरीज़ उसे देखे जा रही थीं क्योंकि इस समय वे ग्रेमन के नियंत्रण में थी।

"यदि आपकी इच्छा है तो अवश्य पूर्ण होगी स्वामी!" दोनों डार्क फेयरीज़ ने एक ही स्वर में कहा। जिसे सुनते ही ग्रेमन की आँखों की पुतलियां नाचना बन्द हुई, उसका वक्ष चौड़ा हो गया और सींगों में लाल-नीली ऊर्जा तरंगे चमकने लगीं।

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एक विशाल पहाड़ी, जो चारो ओर से हिम से ढकी हुई थी। यहां इतनी अधिक ठंडी थी कि हिमपशु भी यहां रह सकने में असमर्थ थे। सामने हिम की नुकीली चट्टानें दिखाई दे रही थी जिनकी धार खड्ग की भांति नुकीला था। उन्ही चट्टानों के पास से कुछ आवाजे आ रही थी जिनमें हर्ष के साथ चिंता का पुट भी था।

"तुमने देखा? स्वामी नराक्ष मैत्रा को हमारे वश में देखने के पश्चात भी क्रोधित हो रहे थे।" नादान बालक के समान डरते हुए स्वर में वह बोला।

"नही अमन! उनका क्रोध आवश्यक था। हमें शीघ्र ही विस्तार को मारकर उसे मृत अवस्था में उनके समक्ष प्रस्तुत करना होगा।" चट्टानों से थोड़ा ऊपर उठते हुए वीर, अमन से बोला। उसके स्वर में प्रतिशोध स्पष्टया झलक रहा था।

"विस्तार को मैं भी मारना चाहता हूँ वीर! परन्तु क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हे विस्तार से इतनी अधिक घृणा क्यों है?" अमन, विस्तार के बराबर की ऊँचाई में आकर बोला। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो दोनों हिम की नुकीली चट्टानों पर खड़े थे।

"ये देखो!" वीर ने अपने सीने के कवच हटाते हुए बोला, उसके सीने पर एक जलता हुआ चिन्ह था जो शायद इतने वर्षों तक उजाले की दुनिया में रहने के कारण मिला था। "ये घाव उसने मुझे उजाले की दुनिया में रखकर दिया। यदि उसके द्वारा अंधेरे का यह द्वार न खुलने को होता तो मैं उसे इस बार भी उसके जन्म के दिन ही मार देता।" वीर अत्यधिक घृणा को समेटे हुए बोला।

"हाहाहा...अब हम दोनों मिलकर तड़पा-तड़पाकर मारेंगे उसे।" अमन जोर जोर से अट्ठहास करता हुआ बोला।

"बस एक बार वह हमारे सामने तो आ जाये, फिर उसकी मृत्यु निश्चित है। परन्तु हमे स्वामी नराक्ष के दृष्टि में आने से बचते हुए यह करना होगा क्योंकि स्वामी उसे पुनः अपना सेवक बनाना चाहेंगे और मैं नही चाहता कि अंधेरा और उजाला एक में ही समन्वयित हो जाये। बस ये द्वार इतना खुला रहे कि कोई भी स्याह जीव आसानी से उजाले की दुनिया में जाकर आ सके हाहाहा..." वीर भी जोरदार अट्ठहास कर्तव्य हुए स्वयं के मनोभावों पर ब्रेक लगाते हुये बोला।

"जैसे ही वह अपनी शक्तियों पर नियंत्रण पाता जाएगा उसे अपनी सम्पूर्ण स्मृति मिल जाएगी और उसके साथ ही अंधेरे और उजाले का समन्वयन प्रारंभ हो जाएगा, इसके पश्चात उसे मार पाना असम्भव होगा, हमें द्वार के कुछ और बड़े होते ही उसे समाप्त करना होगा ताकि द्वार कभी बन्द न हो।" अमन अपनी योजना बनाते हुए कहा।

"मुझे तो यदि वह इसी वक्त भी मिल जाए तो मैं उसे अपने एक एक घाव का हिसाब चुकाकर मारूंगा।" वीर के हाथों में नीली स्याहियां नाचने लगीं। उसकी आँखें अब विस्तार को तड़पते देखने को व्यकुलित हो रही थीं।

"एक एक घाव का हिसाब तो मुझे भी चुकाना है वीर!" पहाड़ी के दूसरे छोर से एक स्वर गूँजा। यह विस्तार था, उसकी दहकती स्याह आंखों और बदन के गर्मी से वहाँ की हिम पिघलने लगी। विस्तार तो स्वयं को छिपाना चाहता था फिर वह यहां क्या करने आया था? "परन्तु क्या तुम हिसाब दे पाओगे? मेरे उस दर्द का! जिसे तुम सबने मिलकर दिया है।"

"आओ मारो विस्तार को!" हवा में लहराते हुए विस्तार उन दोनों के ललकारकर बोला। उसके आँखों और हाथो से निकल रही स्याहियां  आसमान की ओर जा रही थी, उसका ओमेगा चिन्ह अत्यधिक चमक रहा था।

क्रमशः….



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4 Comments

Kaushalya Rani

25-Nov-2021 10:18 PM

Well persentation

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BhaRti YaDav ✍️

29-Jul-2021 08:19 AM

Nice

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🤫

28-Jul-2021 04:50 PM

उफ्फ दो विलेन किरदार मिल गये ... अब विस्तार के लिये थोड़ी और मुश्किले बढ गयीं

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